Tuesday, December 1, 2009
Thursday, November 26, 2009
Tuesday, November 24, 2009
Thursday, October 1, 2009
Wednesday, September 30, 2009
खुबसूरत गंगा और बीरपुर
बीरपुर वैसे तो काफी densely populated गाँव है , एक तरफ गंगा होने से गाँव का फैलाव ज्यादा नहीं हो पाया . पर गाँव Bio Diversity से भरपूर है . गाँव के पूर्वी छोर की ओर असरनाथ मंदीर से एक हरीत पट्टी शुरू होती है जो पलियां गाँव तक जाकर खत्म होती है . इस हरित पट्टी में कई बाग बगीचे और घना जंगल है . इसमें नीलगाय , सियार, हिरन , खरगोश , जहरीले साँप पाए जाते है , हालाकि इन कुछ दिनों में इस क्षेत्र में हरियाली काफी कम हो गयी है . पिछले साल जब मै जब कुछ बॉस काटने इस क्षेत्र में गया था तो पंचदेव ( बीरपुर का पटहेर) मेरे साथ था , बताने लगा , "बीस -तीस साल पहले इस क्षेत्र में आने में डर लगता था ". पंचदेव बीरपुर कापटहेर है और हरेक काम में माहिर बन्दा है. गंगा के उचे तटबंध पर बसा ये इलाका आज भी काफी रोमांचक है और एक अलग एहसास देता है , इस इलाके की कुछ तस्वीरे पोस्ट कर रहा हूँ.




Tuesday, September 29, 2009
बेबस और लाचार गंगा

आज एक और निराशाजनक रिपोर्ट छपी है अखबार है. खबर पढ़ने पर दिल भारी हो गया , खबर फिर गंगा की सेहत के बारे में, गंगा बीमार होती जा रही है . रिपोर्ट के मुताबिक , अक्टूबर में ही गंगा बेदम हो जाएगी . पानी का टोटा लग जाएगा . गंगा अपनी सहायक नदियों के सहारे ही रह जाएगी . पिछले साल अप्रैल में वाराणसी गया था , पुरी नदी में मात्र घुटने भर पानी था , वो भी हरे शैवाल से भरा पड़ा, मृत पानी . नदी के बीच में केवल बालू ही बालू नजर आ रहा था . गंगा नदी सहारा मरुस्थल बनती जा रही है . रामनगर से वाराणसी को जोड़ने वाला पीपा पुल के पास एक सरकारी साइन बोर्ड टंगा हुआ था , "संरक्षित कछुआ विहार " .मेरा भाई रामनगर में ही रहता है , बोलने लगा "भैयाँ आज तक तो मैंने एक भी कछुआ नहीं देखा ". हा इसके संरक्षण के लिए बहुत बड़ा बजट आता होगा . मेरे गाँव का नाऊ (Barber) बताता है की पहले गंगा में मगरमच्छ / घड़ियाल मिलते थे. आज कल घड़ियाल नहीं है पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले बहुत है .
आज वक्त बोलने का नहीं कुछ करने का है , एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर गंगा का यही हाल रहा तो २०२० तक गंगा पूरी तरह लुप्त हो जाएगी. क्या हम आने वाली पीढी को गंगा के बारे में किताबो और फिल्मो के माध्यम से बताएँगे ?,आने वाली पीढी हमारे इस बेबसी और लाचारगी को कभी माफ़ नहीं करेंगी .
"इस गंगा में तो नाव चलाना दूभर "

दैनिक जागरण में आज एक रिपोर्ट छपी है , शीर्षक है "इस गंगा में तो नाव चलाना दूभर ". लेखक हरिद्वार से नरोरा (बुलंदशहर) नाव पर गंगा में भ्रमण को निकले है . लेकिन गंगा का सूरते हाल चौकाने वाला है .हरिद्वार से लेकर नरोरा (बुलंदशहर) तक चार दिन के सफ़र में हर थोडी देर के बाद नाव मिट्टी में धस जाती थी और उतर कर बीच धारा में उसे धक्का देकर थोड़े गहरे पानी में ले जाना होता था. पूरा लेख यहाँ पढ़े .
गंगा का यही हाल कमोबेश हर जगह है. बचपन में जब गंगा में नहाने जाता था पानी नीला हुआ करता था आज वो पानी मटमैला नजर आता है, कुछ साल बाद शायद , यह मटमैला पानी भी शायद ना मिले . आख़री बार जब गाँव गया था, रोज गंगा में नहाने गया , सोचा क्या पता कल नहाने लायक गंगा हो ना हो. कुछ सुंस (ganga dolphin) और मछलियाँ दिखाई दी . वही किनारे पर कुछ सियार (jackal) भी दिखे . खुशी हुई इन्हें देखकर , आज ये सुंस (ganga dolphin) और कही दिखाई नहीं दे रहे है , मेरा गाँव भाग्यशाली है . सुंस (ganga dolphin) को सरकार ने संरक्षित प्राणी करार किया है फिर भी ये विलोपन के कगार पर है.
गंगा और इसके इको सिस्टम को बचाना ही होगा, हर हाल में .
Wednesday, September 23, 2009
हीरा की दूकान


बीरपुर में कभी आए तो हीरा के दूकान पर जरुर जाए . गंगा के मनोरम तट पर बना, द्वारकाधीश मंदीर के पास स्थित यह मिठाई की दूकान लगभग १९८९ में हीरा( मल्लाह fisherman) ने शुरू की थी. उदारीकरण के दौर से भी पहले की यह दूकान , शायद बीरपुर की पहली मिठाई की दूकान है . यहाँ आप चाय, समोशे , चना , खीरमोहन , चमचम , रसगुल्ले,लड्डू और ग्रामीण मिष्ठान का आनंद खालिस देसी अंदाज में ले सकते है . दूकान की अंगेठी लकडी , गोइठा( गोबर का बना हुआ जलावन ) आप को पुराने ज़माने की याद दिलाते है. , बाजारवाद की अंधी दौड़ ने समाज-जीवन के हर क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया है पर आज यह दूकान अंपने पुराने जगह पर बिलकुल उसी अवस्था में है. दूकान में बैठते ही धुँआ आपका स्वागत करता है . दूकानदार हीरा मुझे प्रेमचंद की कहानियों का एक पात्र लगता है , साहूकारों / जमींदारों के क़र्ज़ में डूबा एक व्यक्ति जो पैसा उधार पर लेकर चीनी, दूध , लकडी और अन्य सामान जुटाता है और मिठाइया बनाता है. पूरा गाँव मिठाइयों के लिए इसी दूकान पर निर्भर होता है . हीरा पुरे गाँव की इज्ज्जत को देखता, संभालता है , किसी के घर कोई मेहमान आया है , मेहमान को पानी के साथ देने के लिए घर में कोई मिष्ठान नहीं है , घर के लोग हीरा की दूकान का सहारा लेते है . गाँव में कोई बेटी , बहु की बिदाई होनी है हीरा ही सहारा होता है.उधार मांग कर मिठाई खाने वाले भी बहुत होते है . बचपन से लेकर आज तक मैं जब भी गाँव गया हीरा के दूकान की मिठाइयाँ जरुर खाई. दूकान पर हमेशा भीड़ खड़ी दिखाई देंगी. राजनीति ,खेल , अर्थशाश्त्र, हरेक विषय पर चर्चा होती है उस दूकान पर . एक तरह से गाँव का चौपाल है हीरा की दूकान . जाट -पात , उच्च - नीच का भेद किये बिना हीरा सबको साथ लेकर चलता है.
आख़िरी बार जब गाँव गया था तब हीरा के दूकान पर गया , हीरा कही दिखाई नहीं दिया , उसका दस साल का बेटा दुकानदारी देख रहा था , पूछने पर बताया की हीरा आजकल बीमार रहता है और वही आजकल दुकान संभाल रहा है. पढाई के बारे में पूछने पर उसने कोई उत्तर नहीं दिया , कहने लगा बहने है उनकी शादी करनी है. मुझे उस बच्चे में एक लगन, एक जिम्मेवारी दिखी. लेकिन मैं हीरा के बच्चे के भविष्य के बारे में सोचने लगा , एक आदमी से बात भी की , उसने कहा यार कल किसने देखा है ? गरीब आदमी कल की नहीं आज, अभी की देखते , सोचते है . ये भूखे नंगे लोग है , पेट की ज्वाला है जिसे शांत करते - करते मर - खप जाते है आगे की क्या सोचे ? मैं मन ही मन चिंतित हो गया . दूकान के पास ही मुलायम सिंह यादव की तस्वीर वाली एक चुनावी तस्वीर भी चिपकी हुए थी, "समाजवादी पार्टी को वोट दे" . तस्वीर में दो समाजवादियों की तस्वीर थी एक मुलायम सिंह यादव ( जिनके बेटे ऑस्ट्रेलिया पढने गए थे ) दुसरी अमर सिंह की .
आख़िरी बार जब गाँव गया था तब हीरा के दूकान पर गया , हीरा कही दिखाई नहीं दिया , उसका दस साल का बेटा दुकानदारी देख रहा था , पूछने पर बताया की हीरा आजकल बीमार रहता है और वही आजकल दुकान संभाल रहा है. पढाई के बारे में पूछने पर उसने कोई उत्तर नहीं दिया , कहने लगा बहने है उनकी शादी करनी है. मुझे उस बच्चे में एक लगन, एक जिम्मेवारी दिखी. लेकिन मैं हीरा के बच्चे के भविष्य के बारे में सोचने लगा , एक आदमी से बात भी की , उसने कहा यार कल किसने देखा है ? गरीब आदमी कल की नहीं आज, अभी की देखते , सोचते है . ये भूखे नंगे लोग है , पेट की ज्वाला है जिसे शांत करते - करते मर - खप जाते है आगे की क्या सोचे ? मैं मन ही मन चिंतित हो गया . दूकान के पास ही मुलायम सिंह यादव की तस्वीर वाली एक चुनावी तस्वीर भी चिपकी हुए थी, "समाजवादी पार्टी को वोट दे" . तस्वीर में दो समाजवादियों की तस्वीर थी एक मुलायम सिंह यादव ( जिनके बेटे ऑस्ट्रेलिया पढने गए थे ) दुसरी अमर सिंह की .
आज सोचता हु जब भी गाँव जाउ हीरा स्वस्थ मिले , अपनी छोटी सी दूकान में चूल्हे को पंखा हाँकता हुआ…………..
Friday, September 18, 2009
Thursday, March 5, 2009
Tuesday, March 3, 2009
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