Wednesday, September 23, 2009

हीरा की दूकान




बीरपुर में कभी आए तो हीरा के दूकान पर जरुर जाए . गंगा के मनोरम तट पर बना, द्वारकाधीश मंदीर के पास स्थित यह मिठाई की दूकान लगभग १९८९ में हीरा( मल्लाह fisherman) ने शुरू की थी. उदारीकरण के दौर से भी पहले की यह दूकान , शायद बीरपुर की पहली मिठाई की दूकान है . यहाँ आप चाय, समोशे , चना , खीरमोहन , चमचम , रसगुल्ले,लड्डू और ग्रामीण मिष्ठान का आनंद खालिस देसी अंदाज में ले सकते है . दूकान की अंगेठी लकडी , गोइठा( गोबर का बना हुआ जलावन ) आप को पुराने ज़माने की याद दिलाते है. , बाजारवाद की अंधी दौड़ ने समाज-जीवन के हर क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया है पर आज यह दूकान अंपने पुराने जगह पर बिलकुल उसी अवस्था में है. दूकान में बैठते ही धुँआ आपका स्वागत करता है . दूकानदार हीरा मुझे प्रेमचंद की कहानियों का एक पात्र लगता है , साहूकारों / जमींदारों के क़र्ज़ में डूबा एक व्यक्ति जो पैसा उधार पर लेकर चीनी, दूध , लकडी और अन्य सामान जुटाता है और मिठाइया बनाता है. पूरा गाँव मिठाइयों के लिए इसी दूकान पर निर्भर होता है . हीरा पुरे गाँव की इज्ज्जत को देखता, संभालता है , किसी के घर कोई मेहमान आया है , मेहमान को पानी के साथ देने के लिए घर में कोई मिष्ठान नहीं है , घर के लोग हीरा की दूकान का सहारा लेते है . गाँव में कोई बेटी , बहु की बिदाई होनी है हीरा ही सहारा होता है.उधार मांग कर मिठाई खाने वाले भी बहुत होते है . बचपन से लेकर आज तक मैं जब भी गाँव गया हीरा के दूकान की मिठाइयाँ जरुर खाई. दूकान पर हमेशा भीड़ खड़ी दिखाई देंगी. राजनीति ,खेल , अर्थशाश्त्र, हरेक विषय पर चर्चा होती है उस दूकान पर . एक तरह से गाँव का चौपाल है हीरा की दूकान . जाट -पात , उच्च - नीच का भेद किये बिना हीरा सबको साथ लेकर चलता है.

आख़िरी बार जब गाँव गया था तब हीरा के दूकान पर गया , हीरा कही दिखाई नहीं दिया , उसका दस साल का बेटा दुकानदारी देख रहा था , पूछने पर बताया की हीरा आजकल बीमार रहता है और वही आजकल दुकान संभाल रहा है. पढाई के बारे में पूछने पर उसने कोई उत्तर नहीं दिया , कहने लगा बहने है उनकी शादी करनी है. मुझे उस बच्चे में एक लगन, एक जिम्मेवारी दिखी. लेकिन मैं हीरा के बच्चे के भविष्य के बारे में सोचने लगा , एक आदमी से बात भी की , उसने कहा यार कल किसने देखा है ? गरीब आदमी कल की नहीं आज, अभी की देखते , सोचते है . ये भूखे नंगे लोग है , पेट की ज्वाला है जिसे शांत करते - करते मर - खप जाते है आगे की क्या सोचे ? मैं मन ही मन चिंतित हो गया . दूकान के पास ही मुलायम सिंह यादव की तस्वीर वाली एक चुनावी तस्वीर भी चिपकी हुए थी, "समाजवादी पार्टी को वोट दे" . तस्वीर में दो समाजवादियों की तस्वीर थी एक मुलायम सिंह यादव ( जिनके बेटे ऑस्ट्रेलिया पढने गए थे ) दुसरी अमर सिंह की .



आज सोचता हु जब भी गाँव जाउ हीरा स्वस्थ मिले , अपनी छोटी सी दूकान में चूल्हे को पंखा हाँकता हुआ…………..

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