Tuesday, September 29, 2009

बेबस और लाचार गंगा


आज एक और निराशाजनक रिपोर्ट छपी है अखबार है. खबर पढ़ने पर दिल भारी हो गया , खबर फिर गंगा की सेहत के बारे में, गंगा बीमार होती जा रही है . रिपोर्ट के मुताबिक , अक्टूबर में ही गंगा बेदम हो जाएगी . पानी का टोटा लग जाएगा . गंगा अपनी सहायक नदियों के सहारे ही रह जाएगी . पिछले साल अप्रैल में वाराणसी गया था , पुरी नदी में मात्र घुटने भर पानी था , वो भी हरे शैवाल से भरा पड़ा, मृत पानी . नदी के बीच में केवल बालू ही बालू नजर आ रहा था . गंगा नदी सहारा मरुस्थल बनती जा रही है . रामनगर से वाराणसी को जोड़ने वाला पीपा पुल के पास एक सरकारी साइन बोर्ड टंगा हुआ था , "संरक्षित कछुआ विहार " .मेरा भाई रामनगर में ही रहता है , बोलने लगा "भैयाँ आज तक तो मैंने एक भी कछुआ नहीं देखा ". हा इसके संरक्षण के लिए बहुत बड़ा बजट आता होगा . मेरे गाँव का नाऊ (Barber) बताता है की पहले गंगा में मगरमच्छ / घड़ियाल मिलते थे. आज कल घड़ियाल नहीं है पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले बहुत है .

आज वक्त बोलने का नहीं कुछ करने का है , एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर गंगा का यही हाल रहा तो २०२० तक गंगा पूरी तरह लुप्त हो जाएगी. क्या हम आने वाली पीढी को गंगा के बारे में किताबो और फिल्मो के माध्यम से बताएँगे ?,आने वाली पीढी हमारे इस बेबसी और लाचारगी को कभी माफ़ नहीं करेंगी .

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